कविता संग्रह >> मुट्ठी भर रोशनी मुट्ठी भर रोशनीश्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी
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चाँदनी रात भर पास बैठी रही, हम अंधेरों में अपने भटकते रहे
इस काव्य संग्रह में गत दो दशकों में की कुछ एक रचनाएँ हैं। जीवन में जो कुछ देखा, सुना और जिया उसे ही शब्दों में समेटने का प्रयास किया है। वैसे सृजन के अविरल प्रवाह में जो विचार, भावनाएँ और कल्पनाएँ आईं उन सभी को अभिव्यक्ति का परिधान दिया। यह सच है कि अनुभूति की मुट्ठी में भावों की रोशनी बंद थी जब खुली तो उन्हीं सिमटी किरणों ने रचनाओं का रूप ग्रहण किया। मुट्ठी के संग्रह की अपनी सीमा तथा विवशता है यही कुछ मेरी रचनाओं के साथ भी है जिसे स्वीकारने में मुझे संकोच नहीं। इस संकलन में मूलतः गीत और मुक्त छंद की शैली में कविताएँ हैं। गीतों में सामान्यतः भावों की गहनता और गीतात्मकता का बाहुल्य रहता है जबकि मुक्तछंदीय कविताओं में विचारों में विस्तार अपनी सम्पूर्ण तरलता के साथ उभरता है।
निःसंदेह जीवन में परस्पर विरोधी तत्वों का समावेश रहता है - आँसू-मुस्कान, वियोग-संयोग, लाभ-हानि और जय-पराजय आदि युग्मों से हम निरंतर प्रभावित होते रहते हैं और यही प्रभाव हमारी सृजन प्रक्रिया को उकेरता भी है।
निःसंदेह जीवन में परस्पर विरोधी तत्वों का समावेश रहता है - आँसू-मुस्कान, वियोग-संयोग, लाभ-हानि और जय-पराजय आदि युग्मों से हम निरंतर प्रभावित होते रहते हैं और यही प्रभाव हमारी सृजन प्रक्रिया को उकेरता भी है।
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